In D Middle of Nowhere
बड़ी देर से एक शुन्य में हूँ बेनाम
नहीं जानता तू इसका श्रोत है या है परिणाम
अग्नि हूँ अज्ञात या हूँ अगन
मिलूँगा धरती में हो खाक या बनूँगा वन
बन दरिया भी हासिल न हुआ जीवन सफल
फूल बनके सोचा था महक छोड़ जाता
कुदरत ने गुलशन की जगह वीरान अज़ीज़ जाना
कागज़ बना खौफ्शुदा होकर
आशिक को ना मिलू गुमशुदा बनकर
लफ़्ज़ों की शकल में दर्द छोड़ जाएगा
एक आधे लम्हे में उम्रो का हिसाब छोड़ जाएगा
जो मैं तुझसे प्यार करता हूँ तो क्यूँ कुछ बनू जो हो तुझसे जुदा
दुआ न सही, दवा न सही बेशक तेरे आसुओं की परछाई बनू, चाहे मुझसे खफा हो फिर मेराखुदा !
© Nakul Chaturvedi, 20th June, 2011.
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