ग़ज़ल की शकल

 

हर ग़ज़ल में अपनी ज़िन्दगी का अक्स ढूंढ़ता हूँ
जिसकी कमी हर महफ़िल में थी, वो शख्स ढूंढ़ता हूँ

मुझे सच का शौक नहीं,  सुकून-परस्त झूठ ढूंढ़ता हूँ
मुझे मौत का डर नहीं, ज़िन्दगी का कोई बहाना ढूंढ़ता हूँ

धड़कने रुक गयी होती कबकी गर तेरे साथ की आस न होती
तेरे दुखों के ठिकानों पर तुझे ख़ुशी देने के मौके ढूंढ़ता हूँ





©️ नकुल चतुर्वेदी , 27 June 2021

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